जानापाव मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में स्थित है। जानापाव भगवान परशुराम के जन्मस्थली के रूप में मान्य है, शास्त्रों के अनुसार दिए गए वर्णन से पता चलता है कि वास्तविक रूप से जानापाव ही भगवान परशुराम की जन्मस्थली है कई जानकारों का मानना है कि जानापाव के अलावा दूसरी जगह पर भी भगवान परशुराम की जन्मस्थली मानी जाती है, परंतु शास्त्रों में लिखित वर्णन के अनुसार वहां पर स्थित नदियों के अनुसार पर्वतों के अनुसार यह सिद्ध होता है कि भगवान परशुराम की जन्मस्थली जानापाव ही है। महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र भगवान श्री परशुराम का जन्म जानापाव में ही हुआ था। भगवान परशुराम को चिरंजीवी भगवान के रूप में माना जाता है साथ में भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार माने जाते हैं।
मध्य प्रदेश के इंदौर जिले से 45 किलोमीटर की दूरी पर 881 मीटर की ऊंचाई पर यह स्थित है मंदिर तक जाने के लिए सड़क मार्ग है यह घने जंगलों के बीच से होकर गुजरता है यहां पर भगवान परशुराम का पुराना मंदिर है इसके साथ-साथ कई नए मंदिर का निर्माण हो रहा है। घने जंगलों के बीच में होने के कारण यहां पर पहले बिजली पानी की सुविधा नहीं थी परंतु अब के समय में पाइप द्वारा ऊपर पानी भेजा जाता है लाइट की सुविधा उपलब्ध है। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में बिना लहसुन प्याज के भोजन और नाश्ता मिलता है।
भगवान परशुराम की जन्मस्थली जानापाव कई पहाड़ियों के बीच में स्थित है मंदिर के चारों तरफ का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है यहां पर शुद्ध वातावरण होने से लोगों में बीमारियां कम होती हैं। यहां पर प्राकृतिक जड़ी बूटीयों का भंडार है। आज के समय में यहां पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भगवान परशुराम के दर्शन के लिए आते हैं। भगवान परशुराम को ब्राह्मण कुल का गौरव माना जाता है।
मालवा क्षेत्र के पहाड़ियों के बीच बसा हुआ जानापाव क्षेत्र प्रेमियों और टूरिस्ट दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है यहां पर जाने के लिए जंगलों के बीच से घुमावदार मोड़ से होते हुए पहुंचा जा सकता है, इसकी ऊंचाई अत्यधिक होने के कारण भगवान सूर्य के सूर्यास्त के समय शांति से पूर्ण रूप से देख सकते हैं। यह मुंबई इंदौर राजमार्ग से थोड़ी दूर पर स्थित है। यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर मेला आयोजित किया जाता है जो दिवाली के बाद की पहली पूर्णिमा होती है, अक्षय तृतीया के दिन बहुत सारे श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। जंगलों के बीच पहाड़ियों पर स्थित होने के कारण यहां पर श्रद्धालु के साथ-साथ पर्यटक भी आते हैं।
जानापाव दर्शन व घूमने के लिए सबसे अच्छा समय बरसात और ठंड का होता है, बरसात के बाद जाने पर यहां पर हरे भरे दृश्य का आनंद ले सकते हैं और गर्मी से भी बचा जा सकता है। दिवाली के बाद का समय महत्वपूर्ण रूप से शुभ माना जाता है।
1- जानापाव पहाड़ी – जानापाव पहाड़ी की ऊंचाई 881 मीटर है या घने जंगलों से घिरा हुआ पर्वत है। जानापाव पर्वत पर चढ़ने और यहां भ्रमण करना बहुत ही आनंददायक होता है यहां दूर-दूर तक फैली हुई नदियां, जंगल सूर्यास्त के समय और भी खूबसूरत लगते हैं। जानापाव पर्वत की छोटी को विशेष रूप से शक्तिशाली वनस्पतियों के लिए भी जाना जाता है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है।
2- जमदग्नि आश्रम – जानापाव की पहाड़ी की चोटी पर प्राचीन जमदग्नि महाराज का आश्रम है इस आश्रम की स्थापना जमदग्नि महाराज ने ही की थी माना जाता है कि भगवान परशुराम की मां रेणुका ने पूरे क्षेत्र में औषधि, जड़ी बूटियां लगाई थी। जिसका आज विकराल रूप देखने को मिलता है तरह-तरह की वनस्पतियां यहां पाई जाती हैं। जानापाव का यह क्षेत्र आध्यात्मिक रूप से भी प्रसिद्ध है।
3- कार्तिक पूर्णिमा मेला- जानापाव पहाड़ी पर दिवाली के बाद कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर यहां विशाल मेला आयोजित किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशाल भीड़ होती है।इस मेले में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भगवान परशुराम के दर्शन के लिए आते हैं और मेले में सम्मिलित होते हैं। इस मेले में तरह-तरह की चित्रकलाएं व वनस्पतियां संपूर्ण मात्रा में पाई जाती हैं।
चिरंजीवी भगवान परशुराम की जन्मस्थली पर सभी हिंदुओं को एक बार अवश्य जाना चाहिए।